मौलाना महमूद मदनी बोले: ‘जिहाद’ शब्द को गलत रूप में पेश किया जा रहा है | सरकार और मीडिया पर निशाना
भोपाल: जमीयत उलमा-ए-हिंद (Jamiat Ulama-e-Hind) के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने “जिहाद” शब्द के दुरुपयोग को लेकर सरकार, मीडिया और समाज के एक हिस्से की तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा कि “जिहाद” को हिंसा, दुर्व्यवहार और नफरत से जोड़ना न केवल इस्लाम की मूल अवधारणा का गलत चित्रण है, बल्कि इससे सामाजिक समरसता को भी ठेस पहुँचती है।
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🕌 “जिहाद” शब्द का दुरुपयोग — एक गलत नैरेटिव
भोपाल में आयोजित संगठन की राष्ट्रीय शासी निकाय की बैठक के दौरान मदनी ने कहा — “इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मनों ने 'जिहाद' को दुर्व्यवहार, संघर्ष और हिंसा का पर्याय बना दिया है। कुछ जिम्मेदार लोग भी इन शब्दों के प्रयोग में शर्म महसूस नहीं करते।” उन्होंने “लव जिहाद”, “भूमि जिहाद”, “शिक्षा जिहाद” और “थूक जिहाद” जैसे शब्दों को “राजनीतिक और मीडिया-निर्मित प्रचार” बताया, जिनका उद्देश्य मुस्लिम पहचान को बदनाम करना है।
मदनी ने कहा कि कुरान में “जिहाद” का अर्थ केवल युद्ध नहीं, बल्कि आत्म-सुधार, समाज कल्याण और अन्याय के खिलाफ संघर्ष है। उन्होंने कहा — “जब-जब ज़ुल्म होगा, तब-तब जिहाद होगा।” उनके अनुसार, उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना ही असली जिहाद है — जो इस्लाम का मूल संदेश है।
⚖️ न्यायिक स्वतंत्रता पर उठाए सवाल
भाषण के दौरान मौलाना मदनी ने भारत की न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद विवाद, तीन तलाक़ पर प्रतिबंध जैसे फैसलों से यह आभास होता है कि न्यायपालिका “सरकारी दबाव” में काम कर रही है। मदनी ने कहा — “सर्वोच्च न्यायालय तभी ‘सर्वोच्च’ कहलाने योग्य है जब वह संविधान के अनुरूप चले। अगर वह उससे भटकता है, तो उसे सर्वोच्च कहने का अधिकार नहीं।”
🕊️ धार्मिक स्वतंत्रता और धर्मांतरण कानून पर चिंता
मदनी ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों के दुरुपयोग पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि इन कानूनों का इस्तेमाल इस तरह किया जा रहा है मानो अल्पसंख्यक समुदाय का अपने धर्म का पालन करना अपराध हो गया हो। उन्होंने कहा — “संविधान धर्म की स्वतंत्रता देता है, लेकिन आज अल्पसंख्यक को अपने धर्म का पालन करने के लिए डर और सज़ा का जोखिम उठाना पड़ रहा है।” वहीं दूसरी ओर, “घर वापसी” जैसे अभियानों को सरकारी संरक्षण मिलने का आरोप भी लगाया।
📣 मीडिया और राजनीतिक नैरेटिव पर आरोप
मदनी ने कहा कि मीडिया के एक बड़े हिस्से ने “जिहाद” को सनसनी और नफरत का प्रतीक बना दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग “इस्लाम को आतंक से जोड़ते हैं”, वे न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं, बल्कि देश की एकता और सामाजिक सौहार्द को भी नुकसान पहुँचा रहे हैं। उन्होंने सरकार से अपील की कि ऐसे शब्दों और अभियानों को बढ़ावा देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
🧭 निष्कर्ष — ‘जिहाद’ का सच्चा अर्थ समझने की ज़रूरत
मौलाना महमूद मदनी का यह बयान एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि “जिहाद” को नफरत या हिंसा का नहीं, बल्कि अन्याय के खिलाफ संघर्ष और मानवता के उत्थान का प्रतीक समझा जाए। उनकी अपील थी — समाज और मीडिया को जिम्मेदारी के साथ काम करना चाहिए ताकि धर्मों के बीच गलतफहमी की खाई और न बढ़े।
👉 Source: ABP Live – Mahmud Madani slams misuse of the word ‘Jihad’ 🔗 NeoYojana – राष्ट्रीय समाचार अपडेट [ad_2]मौलाना महमूद मदनी जिहाद विवाद – ताज़ा अपडेट
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